तर्ज :- लै के पहला पहला प्यार...
टेक :- जो है सच्चा करतार, सारे जग का पालनहार।
काया नगरी में रहता निराला कारीगर।
जो है सच्चा करतार...
1. हैरत का उसने कैसा मन्दिर बनाया।
मूर्ख बन्दे तूने भेद ना पाया।
दिन को करता मारो मार, रात को सोए खर्राटे मार।
काया नगरी...
2. दुनियां में रखना जी पाँव सम्भल के ।
गिर न तू जाए कहीं इसमें फिसल के।
रहना हो के होशियार, न कर दुनियां साथ प्यार।
काया नगरी...
3. मानस चोला उसने कैसा बनाया।
ऐ पापी बन्दे तूने कदर न पाया।
हाथ से चली गई जब बार, फिर तूं रोवें ढाहीं मार।
काया नगरी...
4. पाँच तत्त का एक पुतला बनाया।
मैं का बीच पर्दा पाके आप सिधाया।
अपना छोड़ के तूं हंकार, अन्दर जा के कर दीदार।
काया नगरी...
5. बाहर तू फिर फिर यूं ही जन्म गवाया।
मालिक तेरे अन्दर बैठा ख्याल न आया।
जरा करके देख विचार, अपने अन्दर झाती मार।
काया नगरी...
6. सन्त फकीर सब अन्दर बताते।
बाहर जो ढँूढे उसे देख कर हँसते।
पड़ी सदियों की है मार, तो भी करता नहीं एतबार।
काया नगरी...
7. कहें ‘शाह सतनाम जी’ काहनूं वट्टïी बैठा दड़* जी।
मानस की पौड़ी मिल गई चढऩा तो चढ़ जी।
तेरा हो जाए बेड़ा पार, करके सतगुरु साथ प्यार।
काया नगरी...।।
टेक :- जो है सच्चा करतार, सारे जग का पालनहार।
काया नगरी में रहता निराला कारीगर।
जो है सच्चा करतार...
1. हैरत का उसने कैसा मन्दिर बनाया।
मूर्ख बन्दे तूने भेद ना पाया।
दिन को करता मारो मार, रात को सोए खर्राटे मार।
काया नगरी...
2. दुनियां में रखना जी पाँव सम्भल के ।
गिर न तू जाए कहीं इसमें फिसल के।
रहना हो के होशियार, न कर दुनियां साथ प्यार।
काया नगरी...
3. मानस चोला उसने कैसा बनाया।
ऐ पापी बन्दे तूने कदर न पाया।
हाथ से चली गई जब बार, फिर तूं रोवें ढाहीं मार।
काया नगरी...
4. पाँच तत्त का एक पुतला बनाया।
मैं का बीच पर्दा पाके आप सिधाया।
अपना छोड़ के तूं हंकार, अन्दर जा के कर दीदार।
काया नगरी...
5. बाहर तू फिर फिर यूं ही जन्म गवाया।
मालिक तेरे अन्दर बैठा ख्याल न आया।
जरा करके देख विचार, अपने अन्दर झाती मार।
काया नगरी...
6. सन्त फकीर सब अन्दर बताते।
बाहर जो ढँूढे उसे देख कर हँसते।
पड़ी सदियों की है मार, तो भी करता नहीं एतबार।
काया नगरी...
7. कहें ‘शाह सतनाम जी’ काहनूं वट्टïी बैठा दड़* जी।
मानस की पौड़ी मिल गई चढऩा तो चढ़ जी।
तेरा हो जाए बेड़ा पार, करके सतगुरु साथ प्यार।
काया नगरी...।।
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