तर्ज :- भगवान तेरा इन्सान देख ले...
टेक :- जे सुख पाना चाहे बन्दे, रख सतगुर का ध्यान।
यही है सब से उत्तम ज्ञान।
1. आँधी और तूफान में अपने मन का दीप जलाए।
लाखों वारी रोवे अखियां पग-पग ठोकर खाए।
सीस झुकाए सतगुर आगे नन्हीं सी इक जान। यही है...
2. इस जीवन में दु:ख-सुख बन्दे आते हैं हर रोज।
पिछले कर्मों वाला लेखा मुक जाए इक रोज।
सब कुछ उसके अर्पण करके हुक्म तूं उसका मान।
यही है सब...
3. मेरा-मेरा करता फिरता इक पल नाम न ध्याए।
सारा दिन तृष्णा में जलता इक पल चैन न पाए।
माया जोड़ कर भरे खजाने रे मूर्ख नादान।
यही है सब...
4. मेरी मेरी कैरों करते दुर्याेधन के भाई।
बारह जोजन छतर झुले था देही गिरझ न खाई।
लम्बे दावे बाँधता फिरता दो दिन का मेहमान।
यही है सब...
5. इक लख पूत, सवा लख पोता मन्दिर सोन बनाए।
चाँद और सूर्य करें रसोई, पंखा पौन* चलाए। *पवन
कहें ‘शाह सतनाम जी’ कोई रहा न बाकी,
जो दीआ करे मकान। यही है सब...।।
टेक :- जे सुख पाना चाहे बन्दे, रख सतगुर का ध्यान।
यही है सब से उत्तम ज्ञान।
1. आँधी और तूफान में अपने मन का दीप जलाए।
लाखों वारी रोवे अखियां पग-पग ठोकर खाए।
सीस झुकाए सतगुर आगे नन्हीं सी इक जान। यही है...
2. इस जीवन में दु:ख-सुख बन्दे आते हैं हर रोज।
पिछले कर्मों वाला लेखा मुक जाए इक रोज।
सब कुछ उसके अर्पण करके हुक्म तूं उसका मान।
यही है सब...
3. मेरा-मेरा करता फिरता इक पल नाम न ध्याए।
सारा दिन तृष्णा में जलता इक पल चैन न पाए।
माया जोड़ कर भरे खजाने रे मूर्ख नादान।
यही है सब...
4. मेरी मेरी कैरों करते दुर्याेधन के भाई।
बारह जोजन छतर झुले था देही गिरझ न खाई।
लम्बे दावे बाँधता फिरता दो दिन का मेहमान।
यही है सब...
5. इक लख पूत, सवा लख पोता मन्दिर सोन बनाए।
चाँद और सूर्य करें रसोई, पंखा पौन* चलाए। *पवन
कहें ‘शाह सतनाम जी’ कोई रहा न बाकी,
जो दीआ करे मकान। यही है सब...।।